चिनगी एक जो उपजै, प्रेम अग्नि जिन देह।

ग्यान मान सजज्म सुख, जारि करै तिन खेह॥

जिनके प्रेम देह में प्रेमाग्नि की एक चिंगारी मात्र भी उत्पन्न हो जाती है,तो वह प्रेमाग्नि ज्ञान, मान, संयम, सुख इन सभी को जलाकर खाक कर देती है।

स्रोत
  • पोथी : विश्नोई संत परमानंद बणियाल ,
  • सिरजक : परमानंद बणियाल ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल ,
  • संस्करण : प्रथम
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