चिनगी एक जो उपजै, प्रेम अग्नि जिन देह।
ग्यान मान सजज्म सुख, जारि करै तिन खेह॥
जिनके प्रेम देह में प्रेमाग्नि की एक चिंगारी मात्र भी उत्पन्न हो जाती है,तो वह प्रेमाग्नि ज्ञान, मान, संयम, सुख इन सभी को जलाकर खाक कर देती है।