छप्पर ओरां छांह में कर कर पूळां ओट

घणी जुगत राखै धणी लुआं चूकै चोट॥

भावार्थ:- छप्पर और मकानों के अन्दर-बाहर पूलों की ओट कर बड़ी युक्ति से मालिक उनकी रक्षा करते हैं, फिर भी लूअें अपना वार किये बिना नहीं रहतीं।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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