भरइ पळट्टै भी भरइ, भी भरि भी पळटेहि।

ढाढ़ी हाथ संदेसड़ा, धण विलखंती देहि॥

मारवणी संदेश वाहक ढाढी को संदेशा कहती है, बदलती है फिर कहती है, कहकर फिर बदल देती है। इस प्रकार वह प्रियतमा विलाप करती हुई ढाढ़ी के हाथ संदेशे देती है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया
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