जीव परिणमें जिण जिण भाव मांहि, ते सगला छें न्यारा न्यारा ताहि।

पिण परिणामीक सारा छें तांम, जेहवा तेहवा परिणामीक नांम॥

भावार्थ : जीव जिन-जिन भावों में परिणमन करता है, वे सब भिन्न-भिन्न हैं। वे सभी पारिणामिक हैं। परिणाम के अनुसार उनके नाम हैं।

स्रोत
  • पोथी : भिक्षु वाङमय भाग 1 ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण, मुनि सुखलाल, मुनि कीर्तिकुमार ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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