भल भल नहँ लागै भलौ,

नवल नवोढा नार।

काळ सिखायै लागग्यौ,

भादरवै भरतार॥

भादरवै बिलमावती,

धरती लीली चैर।

पीक पपैया बोलता,

मेहां हुवती मैर॥

पांणी भरतौ पाळ तक,

लेतौ लहरां लैर।

काळ कुलंगी काढग्यौ,

बादीलौ तौ बैर॥

भणतां हुवती भादवै,

मंड जातौ घमसांण।

कसियां घास अर फूस में,

नित री करत निनांण॥

काळ हुवण दै नहँ कदै,

हाळी सूं कोई हेत।

बरसण दै छांट बादळी,

सूखै ऊभा खैत॥

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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