लहि रति सुख लगियै हियै, लखी लजौही नीठि।

खुलति न, मो मन बंधि रही, वहै अधखुली दीठि॥

स्रोत
  • पोथी : नागरीदास ग्रंथावली ,
  • सिरजक : नागरीदास ,
  • संपादक : डॉ. किशोरीलाल गुप्त ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी ,
  • संस्करण : प्रथम
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