खेजड़ल्यां री छांह में गायां अूंट गुवाळ।
लूआं आडी पीठ दे निठसी टाळै काळ॥
भावार्थ:- शमी वृक्षों की छांह में गायें, ऊंट और ग्वाले लूओं की ओर पीठ किये कठिनता से कालयापन कर रहे हैं।