अकथ कहाणी प्रेम की, किण सूँ कही न जाइ।
गूँगा का सुपना भया, सुमर सुमर पिछताइ॥
भावार्थ:- प्रेम की अकथनीय कहानी किसी से नही कही जाती। वह गूंगे के स्वप्न के समान हो गई है जिसे वह याद कर करके पछताता है परन्तु चाह कर भी किसी से वर्णन नहीं कर सकता।