आस लगायां मुरधरा, देख रही दिन रात।
भागी आ तूं वादळी, आयी रुत वरसात॥
भावार्थ:- आठों पहर प्रतीक्षा करते हुए दिन भी महीनों की तरह व्यतीत होते हैं। बादली, अब तो दर्शन दो! मरुधर को और अधिक त्रास मत दो।