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आस लगायां मुरधरा
चंद्र सिंह बिरकाळी
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आस
लगायां
मुरधरा,
देख
रही
दिन
रात।
भागी
आ
तूं
वादळी,
आयी
रुत
वरसात॥
स्रोत
पोथी
: बादली
,
सिरजक
: चंद्र सिंह
,
प्रकाशक
: राजस्थानी ग्रंथागार
,
संस्करण
: 7