वैद जोग वैराग, खोज दीठा नर निंगम।
सन्यासी दरवेस, सेख सोफी नर जंगम।
विथा वियापि मोहि, आज आसा धरि आयो।
पांणी अंन अहार, पेटि सुख परचौ पायो।
पांचवो वेद सांभळि सबद, च्यार वेद हूंता चलू।
केवळी जंभ सावळ कहण, आज सांच पायो ‘अलू’।
(प्रस्तुत छप्पय में कवि की असह्य उदर-शूल की व्याधि का निवारण श्री जाम्भोजी के दर्शन और स्पर्श से होने का संकेत है।)
अपनी शारीरिक व्याधि के निवारण हेतु मैंने बड़े-बड़े वैद्यों, योगियों, वैरागियों और वेद के विद्वानों की तलाश की। सन्यासियों, उच्च कोटि के फकीरों, पीरों, सूफ़ी महात्माओं आदि के पास गया लेकिन कुछ लाभ नहीं हुआ। आज जब उदर-शूल की पीड़ा अत्यधिक बढ़ गयी तो मैं बड़ी आशा के साथ यहां (समराथळ) आया और आते ही ऐसा चमत्कार हुआ कि पेट की व्याधि एकदम मिट गयी और आराम मिल गया।
संसार में अब तक चार वेद प्रसिद्ध हैं लेकिन जम्भदेव द्वारा रचित ‘सबद’ को सुनकर ऐसा लगा मानो ज्ञान का भंडार यह पाँचवा वेद ही हो। अलूनाथजी कहते हैं – आज परम ज्ञानी जम्भेश्वर के दर्शन कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मैंने साक्षात् सत्य के दर्शन किये हों।