पवननंद परचंड जीत दारुण खल जंगी।

अजर अमर अणभंग बजर आयुध बजरंगी।

रिण बलवन्ता रूप परमसंतां प्रतिपालां।

तूझ भुजां हरितणां तहक बाजंत त्रमाळां।

दश्वाण रुद्र एकादसां प्राणपूर पति धरमपण।

कपिराय धीर कवि मंछ कह जय जय श्री रघुवीरजणा॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम