मूकै करुपत मांण, भांण पिच्छम नै भ्यासा।

हुत्रासण होमियां, वधै नह अगर सवासा।

गहर इन्द्र गरजियां, मुदै नह बोलै मोरा।

सांप्रत पूनम ससी, सुरत जद चूक चकोरा।

सयांणा होय सकरा सही, चांचां सूं मारै चड़ा।

(तौ) समरिया 'गंग' अबखी समै, बेल आवै खूबड़ा।।

स्रोत
  • पोथी : खूबड़ जी रा कवित्त (मूल पांडुलिपि में से) ,
  • सिरजक : गंगाराम बोगसा
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