मह वरसै नह मेह, पड़ै असमान धरा पर।

राह थकै खगराज, अखै बळराजा उत्तर।

हेमगिर ऊनौ हुवै, वकै झूठौ दरवासा।

अत सीतळ व्है अगन प्रगट नह भांण प्रकासा।

सांपरत देख वहतौ सगर, घबरावै वागां घड़ा।

(तौ) समरिया 'गंग' अबखी समै, बेल आवै खूबड़ा।।

स्रोत
  • पोथी : खूबड़ जी रा कवित्त (मूल पांडुलिपि में से) ,
  • सिरजक : गंगाराम बोगसा
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