राम नाम दातार, आप कुछि चाह्वै नाहीं।
ऐसा गुरु कलि मांहि, कोई बिरला जन पाही।
सील दया बैराग, सत्य संतोष डिढावै।
हरि मारग में ल्याय, भरम सब दूरि उडावै।
ऐसा सतगुरु पाय करि, फेरि बहै भौं मांहिं।
कह चेतन वा मूढ़ को, मुख देखीजे नाहिं॥