अंग पवन उगटै, पित घर जाय प्रवेशे।
कफ पित एक हुई कंठ गति जाइ बैसै।
नाड़ि छांडि बहिजाय, धरै पिंड घरण पिलंगां।
धूण सीस उठि जाय वैद आगा हूं अंगां।
सिस सूर पट छूटै, अगगि तेज ब्रह्म थांनिक रहै।
तिण वार हुई हरि वाहरूं, कृपानाथ ऊदो कहै॥