छद झपताळ

विसनु आईयो मंगल घरा घर वरतीया।
रुकमीया हेक वण सहू रळियात थीया॥
दीनबंधू तणा सेन दरसावीया।
चोसरी प्रज मेडे चडे चाहीया॥

मन तणी कळपना हूंती जो जास मन।
दुरस त्यां तेहडा आपीया अंग दहन॥
जोसती सकलची पेख जनार्जन।
मोरीया मन कंधु वसंते अंबवन॥

परस साधु तणा पेख मुर भुवणपत।
विकसीया वदन राजीव जिम सरद रत॥
अरपीयें उदकसुं सुकृत आप आपणो।
परणज्यो रुखमणी किसन वर दळ पणो॥

जांनरे कांन प्रत सांभल्यो जू जुवो।
हेक तो लगन विच विघन मोटो हुवो॥
गांमरा गूढ संपेख डेरे गया।
थाहरे थाहरे जांण वाणा थया॥

आवीया किसन बलदेव अण कोकीया।
सुहड सिसपाल भूपाल भेंभीतया॥
सबळ माया प्रबल ताहरी सांमला।
ओळखे प्रसुण पण तजे न न आंमला॥

खाग धूणे खत्री कुंत कोजें कीयें।
मूंछ तांणे मुहें होड कूंदे हीयें॥
गाजते वाजते राव सांमा गया।
अंगसो अंग श्रीरंग आलंगया॥

सबेन संतापरा पाप जाता समी।
आठ अंग ऊपरा जांण ढळीयो अमी॥
महमणरा व बलदेवनां मेलीया।
ओद्रमी वाट पट पाट उखेलीया॥

आव तर कलप वृख छांह जांण आंगणे।
केहल कसतूरीयां महल मांणक कणें॥
खंभ परवाळीया माळीया सात खण।
देव डेरा दीया तेथ कालीदमण॥

किसन बलदेवची भगति भीमक करे।
पाय पाखलि धर वरण मुख वावरे॥
लंगरू सहित परवार सारे लीयो।
कुंटब सह आपणो प्रथम पावन कीयो॥

देत हरदा तणो हेत कंन्या दने।
समझीया सकल कना मदन मोहन मने॥
वात राजा तणे चित चोकस वसी।
काल जांणे कवण कडण वैसो कसी॥

दायजो आज आसीस मस दीजीयें।
लाग दापो करें धूपणो लीजीयें॥
धूपणा आरती आंण आगें धरी।
उर वडा माचवा प्रथम आसीसरी॥

राव राजांण जगदीसरा जण रहे।
गार मृग मादळो छीर ठाडा ग्रहे॥
मृदनें मंजने भाव भोजन भलें।
वेग नर मालीयादि वसद राउलें॥

आज पीउ देख दिन लगनचो उभरें।
घरण जंपे कटक बिहां नोबत घुरें॥
किम हुसे कंत ए जरद पाखर जडे।
कंन्या हेक नें वर दोय चडीया कडे॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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