छंद झपताळ
जांमिनी कुंदनपुर नयर सूतो जिके।
द्वार माहाराजरे जागीओ द्वारके॥
जागीयो नगर जांन वल सोभी जुवे।
हेतरा जुगतसुं जगत वैकुंड हुवे॥
भ्रात गरजें कवण करे छिलत भरण।
कहो नगर कूंण नें नगर राजा कवण॥
गडीयडे समंद जल नदीस गगोमती।
देव श्रीकृसन नें नगर द्वारामती॥
हरखीयो रिख मन मांह आणद हुओ।
जीव जांमण मरण कीध जोखम जुओ॥
देवनें देव देवाधि दरसण दीयो।
पेहल परणांम कर कुशलपण पूछीयो॥
घर कदे मेलीया घरें कुशल छै घणो।
आपणो वास कत क्यो हूओ आवणो॥
पाट ताय भीमस वसूं कुंदणपुर।
को कीयो राज दस नअण भरती कुंवर॥
ब्रह्मा थें हेकला किने दूजो वले।
कहाडीयो मुख वयण कनां लख्यो कागले॥
छोडीयो छाप बंध जास हूंता जतन।
काट थेली थकी वांचे श्रीक्रसन॥
करन उवारिओ जेम करुणा-करण।
सरण तिम राय तिम राख असरण सरण॥
थंभ प्रगट पाथ आसुरा सुर राखीओ।
राखीउ जेम पेहलाद पण राखीओ॥
पांच उवाराया संत जिम पांडवा।
काट लाखागृह मांहिथी केसवा॥
उतरा ग्रभ छे संग अवलोकणी।
राखि इम राखि इम ऊचरे रुखमणी॥
कंत श्रीनारयण ते दन लखमी कही।
राज रघुनाथ ते सती सीता सही॥
वेद न लहे परसूं परत नहीं पारणी।
राज श्रीकृसन तो आज हूं रुखमणी॥
दुलहणी जांण दमघोषरो दीखरो।
दल सबल माझीयां हूओ दिन दूसरो॥
वैर वण वालीयें राज तो क्युं रही।
नेट सूरो हणे तो असुर आवे नहीं॥
सुसर वह्यो संकर राज सोइ सांभळी।
माहेसना सती ताय जनम दूजै मळी॥
दिवस तीजा तणे पोहर चोथे दुणे।
अंबिका तणे मठ सेहट छें आपणे॥