छंद झपताळ

भेटतां अंबिका हुओ मन-भावीयो।
अंतरीख खेडि रथ महमहण आवीयो॥
दुलहणी झालि बैसारतो देखीयो।
एवड़ो सेन पण चित्र आलेखीयो॥

छत्रपति वड-वडा लछण छेतरण।
हालीयो जुगतसुं करे रुखमण हरण॥
संखधर पूरीयो संखसे नाद सुंण।
भयौ जैकार तिण वार त्रेवी भुवण॥

नव नवी दइत सो वर कीधो नवे।
यादवां इंद्र भलो थीयो यादवे॥
वार झाझी घणी तेथ वर वाळीया।
सूरमें तठें जंग मातंग सांभळीया॥

तार सारथी ए रथ चाल्या तुरी।
कांहकें जूपीआ सार फेरा करी॥
भुज भारी कीया जीनसाला भरी।
साबुधे जोबुधे जूसणां सांचरी॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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