छंद झपताळ

भल भला राय-हर राय-कुंअरी भली।
रुखमणी रूप अवतार जग ऊजळी॥
पुत्र परिवार मिले मात बैठा पिता।
सोझीये सुवर वीवाह कारण सुता॥

भाखीयो भीमंक चवद जोतां भुवण।
कुंवरि-वर जोर वर मूझ सूझे क्रसन॥
रुकमीयो जाण कर जलण घ्रत राळ्यो।
भला भीमंक तुमे वर भाळ्यो॥

अवर अपरोग थया राजवंस एतला।
सील कुल सोझ भरुवाड पायां भला॥
दोस मत कोई पित मातरे सर दए।
ऊपजै आहीज मत बुध पण आव ए॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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