छंद झपताळ

ऊछरंग नयर सोइ कुंवर एक अणमुणी।
राखीयो जेहर भाईत भीर रुखमणी॥
विमासे रुखमणी रही इम वासना।
उद्दिम केहो करी नहीं हर आसना॥

जळ भरिया नेत्र नें सेत पेहरण जुई।
हलाहल छोडतां छीक सनमुख हुई॥
बंभ तिण दूसरो आंण बोलावीओ।
अंतरजांमी तणौ जांणीयें आवीओ॥

भणे रुखमणी रिख भलां आया भई।
यादवां इंद्रनें आप कागल जई॥
जाइस हूं धूंधड़े एम ब्राह्मण जपे।
आप फुरमावीयो मूझसूं न थपे॥

विलंब इण वातरी कवर कहे मत वरो।
तास आडो लगन दिन छे तीसरो॥
पुहचसां काल केंह वयण परमांणिओ।
जो हूओ जगतरा रावरो जांणीओ॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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