छंद झपताल
भई भगवांनरे वात मनभावती।
जोवीयो श्रीकिसन सांमुहो जूवती॥
ताप छोड़ो प्रभू वीर वहीवा तणो।
घरा घर लोक उपहास करसी घणो॥
तिका आ रुकमणी एम कहसी त्रीया।
काल कूल बंध मारावतो छाकीया॥
पंथ पत-मात पीहर तणो पाळसी।
सासरे मेंहणा सोकरा साळसी॥
महमहण आज जो मूझ बंधव मरे।
एह खांपण अमां सीसथी न ऊतरे॥
मतो इण मारवा तणो केसव कीयो।
लावड़ो जांण सींचाण झड़पें लीओ॥