छंद झपताल

पूछीयो तेड़ वसुदेव जोसी प्रसन।
लीजीयें देवकी कहे घड़ीओ लगन॥
आखीयो देवकी रास उद्योतरी।
जसोदा नंदरे घरे जांमोतरी॥

पख कहे देवकी कवण कहे दिन पहर।
वार वरतीओ लगन रुखमणी वर॥
भाद्रवो मास नें कृष्णपख भावई।
तिथ तो आठमी बुद्ध हूंतो तई॥

रोहिणी नक्षत्र नें राति आधी रही।
ससिरे उगमण जनम जांणो सही॥
जोवतां जनम दन जनमपत्री जुड़ी।
घणो सिध जोग गोधुलक वाळी घड़ी॥

हल करो सार ही जिमण विहला हुसी।
पाछली रातरे पोहर हर परणसी॥
छप्पन कुल तेड़ीया भोग वस कीया छपन।
वालीया पांतआ उसदां खट वरन॥

घणे माहातम सार ही आदर अती घणे।
पोखीयां विसन व बलदेवरे प्रीसणे॥
कृसनसुं राजगुर एम आवी कहे।
विलंब कीजें नहीं लगन वेला वहे॥

पेंहरीयो लाल इजार पंचवरनीयो।
तांण तण ऊपरां सख्खरा तनीया॥
केसरी पाग नें चोलणे केसरी।
एक तारी घणी घेर आडंबरी॥

पीत पछेवड़ी ओढणे दोपटी।
नंद-गामी नमो धरण गांमी नटी॥
आदरस पूरस प्रमांण इक आंणीयो।
तिलक मृगमद तणो महमहण तांणीयो॥

आंणीया अरगजा घात सूंधे घणा।
छपन कोड़ करे परस्पर छांटणा॥
रंग बीड़ां तणो डस्सणें राजीयो।
छात भण लोकरो सेहरो छाजीयो॥

कोट कोटी तणा नग जे कुंदणे।
ओपीयो जादवें इंद्र आभूषणे॥
जांनीए जादवे बंभ बंदी जणे।
चंदणे महकते गहकते चारणे॥

परठ पग पागड़े चढे त्रिभुवणपती।
ढळकतै मेलीयो चोसरी ढळकती॥
ढळकतै चोसरे कोट चांमर ढळे।
मदनहर वदनचो रूप जोवा मळे॥

चोक पूरावीयां चंद नें चाउलें।
हाथ हेकां भरी थाळ मोताहळें॥
सुभ हर आरती जुवती संचरी।
कांगरे कांगरे दीपमाळा करी॥

देवकी रोहणी राव धारामती।
लूंण लेती करे ऊपरां आरती॥
पोहर पेहला समा पुहचीया हर परण।
गोत्र गुण लखण बत्रीस हंसा गमण॥

कवण कव सकत रसण हेकण कहे।
लेहणो गेहणो तास लखमी लहै॥
रुखमणी किसनरे रंग पूगी रयण।
रंग-रस कहत जो सेस देतो रसण॥

कीध केसर तणा मंजणा कुंकमें।
आभरण पंगरण तिलक आचंभमे॥
साकसू पाकसूं कृसन भोयण करे।
ऊपरां आचमण भरण बीड़ा उरे॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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