छंद झपताळ

नाळ गोळा तणो साज कीधो नरे।
साथ दारू भरे नगारां सिंधुरे॥
ढाल नेजा धजा पूंठ धंधेकरी।
फरहरे पाखरां घोर वाजा घुरे॥

घरहरे पाखरां घोर वाजा घुरे।
पैदलां हैदलां गैदला पस्सरे॥
हैवरां आपरां सेन आगै हूआ।
तीर नांख तोपची कोहोकबांण कीया॥

बाजूए राखीया जोध बांणावळी।
बांणरा हंगरा तांण माहा बळी॥
बंध सूधा खड़े पंथ बे बंधवा।
सूर खांचे रहियो वाग उचीश्रवा॥

थाट आछटीया खेंग नेड़े थहे।
वांहरा थाट हुवै वाट जोला वहे॥
पालतू आवीयो पड़ी पोकारपण।
कंथला ऊठ सिसपाल साका करण॥

रायगुर ऊठीयो सेल भुंज रोळीयें।
धड़हड़्यौ जांणकें धोम घृत ढोळीयें॥
भ्रीह मूंछां भड़े रोड वाजंत्र रड़े।
चडे सिसपाल चतुरंग सेना चड़े॥

ऊपड़ी वाग रज अंबरे ऊपड़ी।
दाट वाराह डिग कोम कंध कड़कड़ी॥
दलां सिसपालरां तणो दोडारव वण।
खेहण राजे रही सीस भालां खवण॥

जाकवा चाकवे पीलवांणा जुआ।
हाथीया जाण पाहाड़ पांखे हूआ॥
धमीयो धनुष धर कहर पाअल धखी।
दीह पण डंबरी सर्वरी सारखी॥

चक्कवे-चक्कवी पूर रयणी चिया।
गेहणी छोड भरथार दूरें गिया॥
मेंण पुड ऊपड़ी खेह खेहां मली।
आपरां बछांने नां उलखें अनली॥

मैगले चंचने मेंण वेह तेमथी।
सूर सूझे नकुं सूरनें सारथी॥
लावीयो सूरमे सेड सूधी लुली।
कुंदीया टार छोटार वाली कली॥

मांकड़ां डाण ओडाण भरता मरू।
खेड़ीया मारगें नां वहे खींगरू॥
वहें सिसपालरा वींदणी वाहरे।
नांखता वाह झोका लीया नाहरे॥

जांनमां आपरी जात जगातीया।
घरण मोटां तणी हाथ ते घातीया॥
ढके महीयारीयां माटला ढोळीया।
कंवर दीठा नहीं कूंत कंकोळीया॥

पालरो तत खरी एह पूरे पखे।
रासभा ताल छे तणा गणतो रखे॥
वालता मूंछ वल वेदसी ना वही।
नंदरा कंसरा धोवटा ए नहीं॥

बरबर जांण कें ज्यागरा बोकड़ा।
पांमसे आज हर हाथ परलोकड़ा॥
वहे जरासंधरा जोध सूधा वगां।
सांमरी चाडनें वेर चाले सगां॥

भूचरां खेचरां हूओ मन भावीओ।
आंपणे भाय अढारमो आवीओ॥
वल भरण गात धाडीत वाहरवटी।
मोहरला वांसलां तेथ वेरे मटी॥

खाडूए खालूए खेंग खेहारवे।
जंगमा तांण मुह फेरीया जादवे॥
ओडीया जादवे आंण चोड़ें अणी।
साव ध्रोहे भड़े लड़ेवा कथणी॥

ऊपड़ी वाग ने आवळी आंहची।
रावते माहुते फेर फोजां रची॥
दीठ दमघोखरे घरण संग स्यांम-धण।
कोप सिसपालरे टोप तूटी कसण॥

तवें जरसंध ससपाल रहें साबतो।
मेंक दळ मेलीयां पूछ मोनें मतो॥
आंगमें पृथवी बलदेव वाळो अणी।
वढस काय जेण दस घड़ा सह वेधणी॥

जुड़ो जरासंध थे वेग जांणो जठी।
कांपीयें जेठ जिम कांन जायें कठी॥
हालीयो सेन ससपालरो हळधरें।
धूंअर आसाढरी जांण धोळागरें॥

देत देवां समा घात कर दाटीए।
करकरा बोलीया लोहडे काटीए॥
मांड पग माह वाह रण कीधे मजा।
तन पडें जीतवा सेंह वाला तजा॥

सोहड़ ससपालरा सांमहो सात्वकी।
बहुसनें बोलीयो हेक वायक बकी॥
हुओ सो देखीओ देखसो जो हुसी।
लोहे लांमा भलां आतरो लाभसी॥

उछजे सेल सालब आखें इसो।
हेदले आजके लूंण आटो हुसो॥
खार जळ मोहरें महरांण आडो खरो।
पूंठ सांहणि समंद सेन ससपालरो॥

ढाल ससपाल दाखवां टूकड़ो।
घण तणो घूट बलदेवरो बोकड़ो॥
पेट तो जनम मा बापरे पावीया।
ऊतरे एं न आकासतें आवीया॥

साच कहें सालबा बीधु तो बे जणा।
तो जसा केतला मीत उधें तणा॥
एतले दुंदुभी वाजीया अंबरे।
पूरीया संखरा नाद पाटोधरें॥

द्वारिका वासीयां अने डाहूल दळां।
सांफळो माचीयो मांझीयां साबळां॥
कोड तेतीस सुर हिमें आदर कीयो।
ईस जगदीस जुध जोअवा आवीयो॥

रथ आधो फरे अछरे रछीया।
इंद्र आहेचीया नारद नचीया॥
खलचरां खेचरां भूचरां पंखणी।
गहकीया भूतड़ा प्रेतड़ा ग्रीधणी॥

वीर वेताल खेंगालरी खोहणी।
आवीया आंहचे चाड आप आपणी॥
अंबका उलका कालका जव्खणी।
जंबुका मीनका कालका जोगणी॥

साकणी डाकणी डायणी समळी।
कार भेरूं तणी हड़मंतरी कलकळी॥
दहू दळ दड़वड़े वंकड़े दागीओ।
जाजरे गयण पाताळ पुड़ जागीओ॥

तड़ डबर घुतणा रणतूर भेरूं त्रहे। 
साल लेर वदां पांच सबदां वहे॥
खेलरी नीध्रसण ढीकलीरा ढोआ।
साल कीया सबद सुंण थाट आंगण सोहा॥

गाज त्रंबाळ पड़ रोल गेंणाइयां।
सालुले सिंधुयें राग सरणाइयां॥
कूद ग्या कायरां वाजती काहली।
वीर आकासमां सूरमां वलकुली॥

मारकां फारकां द्रीठ मुठी मळी।
नाळ गोळा वहे बांण छूटें नळी॥
नाळरा चोक नरघोष नीसांणरा।
धमजगर माचीयो कहर ऊपर धरा॥

कोहोक हाकां समो लोक नर कांपीयो।
हूवके जंत्र पातळ है कंपीयो॥
नाग निंदाळूया धरण द्ये ढोलड़ो।
खड़हड़्यो जांण आकासरो खोलढ़ो॥

धरण पुड़ ऊपड़ी देख मातो धमस।
आतस वाजीयां माझीयां उकरस॥
वहे जत्रबांण चंद्रबांण छूटै वळा।
काट भूडंड कोडंड कर तंडळा॥

ऊकटें काट ह्यो थाट आंमो समां।
गाजीया धनुष घोंकार वेवे गमां॥
गाज चंदेरीएं चाप कीधो गुणे।
तीर छो माझीओ मेह ओखां तणे॥

सम समा धनुषधर मोख छूटे सरां।
कुंजरां क्रीह हि सार वण हैमरां॥
जोर दारू जलें राग मारू जमी।
आज को सूरमे जांण पीधो अमी॥

घूघटी बे घड़ा घोर मातो घणो।
मेहणी मेह ज्युं तीर गोळी तणो॥
छेह खापां करे पाघड़ां छांडीया।
मेंण वासंगरी ऊपरां मांडीया॥

कांधळे समसमा कुंत काळासीआ।
बगतसरे खळकते तुरस छांह वांसीआ॥
हूह माती नरां हेमरां हाथरू।
वाजीया लोह धाड़ीत नें वाहरू॥

बे दळे बें हथां खेगं आया खरा।
साल ले पुरबी एक सोरठरा॥
श्रीकृसन तणा भड़ अनें ससपालरा।
खाग झड़ उझड़े बाजीया रण खरा॥

सेल पेलां भडां छकड़ां सूसरा।
फुरल पेटाळजा काळजा फेफरा॥
आढ दोटे अणीता कणी तीनी ए।
अंग आवे वढे सांग उछीनीए॥

उभी ए सेल ताय आवता आडी ए।
त्रुटतां कंध समा तरपवे ताड़ी ए॥
आयुधे एक एका समा आहुड़े।
भीच भाद्रवरा जांण भेंसा भड़े॥

फाचरा ऊतरें चांचरा फरसीए।
सिधुरां आवटे झाट पाडां सीए॥
धुबके धार जोधार धारू जलां।
सूंड लेती पड़े साथ दंतसूलां॥

गजमोती गरें हसी वाजे गदा।
जांणजें दाड़मी वीज कीजें जुदा॥
वाजीया वीर वीराध वाराधीए।
रोहीया जांण वाराह पाराधीए॥

धीर धीरां समा आवीया धजवड़े।
खाग लागी भड़ां आगलां वेखड़े॥
गहके गोफणी हूंत छूटें गड़ा।
तेवड़ा टोप भाजें किंता तुंवड़ा॥

दाखीयो जादवें ओथ केवी दले।
करवते काट के वाट वीजू जले॥
खंजरे ऊतरे दैत दोरे खरा।
रणिं ऊभी मुड़े भाग जरासिंधरा॥

दांणवां जादवां अरण जंपे दहू।
करण दीठो न जुध आज पाछो कहू॥
पड़े धड़उ क रस चढे गंग पारीयां।
धार वहें एक वाही संखो-धारीयां॥

खाग माथे खलां आछटे उनगां।
आजका डोलवें ढोल धारा अंगां॥
कृसन वाखांणीया जोध वेढीमणा।
आज बलदेव थोड़ि घणा आपणा॥

कोट कोटां समा जुद्ध जोधा करे।
अग्रज ऊपर कीयां आपरा उचरे॥
राड़ रातंबरी राम रातंखीयो।
दांणवे काल कलपंतरो दाखीयो॥

आवटे थाट बलदेवरे आयुधें।
ऊतरे अंग नरलंग आधो अधें॥
लड़थड़े पड़े धड़ वीछुड़े लोहड़े।
पाईयो हळधरे पांणगो पांनड़े॥

रोहणी रतन ग्रभ रेवतीचो रमण।
पीड़ पीड़ा न मुध वाट पांणी पीयण॥
जंत्र नन मंत्र आराध अंजण जड़ी।
गद ओखद उपचार नन गारड़ी॥

पूरवा पाखती बेल बलदेवरी।
हैदलां मैगलां सत्र सांमो हरी॥
संख सारंग ते चक्र लीधो गदा।
राव राणा घणा कंप छूटी रदा॥

वाधयो वल छण जेम कल वाधती।
दांणवां वण करण संपत देखावती॥
परदळे नहसीयो गरव छो पाहरू।
भोम उतारसे भार वाळो भरू॥

मोखीया वांण संधाण मधुसूदने।
विसनर धड़हड़्यौ जांण खड़े वने॥
झाझा नांमी चकर सीस लागा झड़ण।
पतर भर जोगणी रगत लागी पीयण॥

डहडहे डाक होय हाक होकारवण।
घाय घूमें घुळें भड़े भाजण घड़ण॥
विसनरा चक्र पड़े सर वेरीयां।
दड़दड़े झाळ पख कोरणे कोरीयां॥

तूं वळी रोळ अंतोळ त्रूटे तळां।
भाळवां पाळ जरसिंध जूटें भळा॥
संकरखण नारयिण सारखा साझीयां।
वेढ आवे बणी माझीयां वाझीयां॥

कहे जरसंध तुं जोर मोसूं करी।
हरी ससपालरी वरी जाय सें हरी॥
भरमीयो केम जरसंध तूं बळ भणे।
ए वडो मलण मथुरां तणो आपणे॥

तेहीज तुं पारकी छठी जागी तही।
नेट तो लूंकड़ी वाघ जणसे नहीं॥
माल बे वाजीया आव उपर मुदा।
मुंसलां मार गुंजार मातो गदा॥

जोध जरसिंध बलदेव बे बे जुड़े।
खंभ धूज धरा गरवरा खड़हड़े॥
चोसरा खंड ब्रहमंड भड़ छाइया।
घाय तण सपत पाताळ पुड़ घाइया॥

मरगड़ां धड़ां बलदेवरे मुंसळे।
गया जरसंधरा सिधवा धा गळे॥
हरवयो रुकमणी हरण दिन हळधरे।
जेम सो तेम पंचास जरसिंधरे॥

जुड़ण दहकंध बळ बंध कीधो जसा।
ताळ ससपाळ गोपाल माता वसा॥
परठीयो जुध ससपाल चक्रपांणसो।
बांणसो बाण वेधांण वेधांण सो॥

बाथसो बाथ हथीयार हथा हथी।
राळीयो धरण ससपालरो असथी॥
गाळ ससपाल गोपाल वाळी गणी।
घाये वहिया पसूण धाक वागी घणी॥

सार झड़ ऊझड़े जलंतो सोहीओ।
रुकमणी वीर बलवीर गो रोहीओ॥
सांधीआ रुकम जे श्रीकृसन सामुहा।
महमहण छेदीआ बांण बांणा मुहा॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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