छंद झपताळ

अंबिका जावनो रुखमणी आदरे।
कुंवर सिसपालनें जांण खण खण करे॥
मनें सिसपाल जरसिंध बेठा मतें।
जालवण कीजीये अंबिका जोहरते॥

खोहण पंचांणसें हेक खोहणी।
आवसे नहीं चोगांन बांधे अणी॥
जंपे जरसिंध ए घात जो सेंधणी।
राखीयें रतन जिम जतन कर रुखमणी॥

पाटवी कंवर वण सेंहर सहू पारको।
मूंसलेह लें बलदेव पण मारको॥
ओळख्यो पाळख्यो एह छे कुवको।
धीरता को मतां अवस देसी धको॥

सांहणी आंण पलांण पलांण सह।
वांकड़ां भड़ां कज पवंग ताता वलह॥
साबता ठाकुरे चढो पेहरो सलह।
कुंवर घरे अजुं कटक हूई त्रुहकह॥

साकतें जिण ओलांण सावख्खरां।
पूठ कोड़ी धजां घातजें पख्खरां॥
नागारां बांधिआं आंमो सांमा नाडीयां।
ऊपरें ढाल सिंदूर अंवाडीयां॥

भूप बहु रूपत सरूप लीधें भया।
जांण राजिंद्र जोगिंद्र मनें रया॥
जोपती भावती जीण-साला जडे।
भालड़े बांधीये नेत झूल भड़े॥

परठ ओडण पटी खाज नाजा खंजर।
गुरज गुपती गदा सांग सींगण सूपर॥
कमरबंध भी आंकड़े जमदढ कसे।
वाजीआ वीरवर तीर भर तरकसे॥

आव खटतीस वंस राजहंस उतरे।
नांमीयो कंध सिसपाल आगळ नरें॥
मुंणे सिसपाल एक जात वण माहरी।
सकल दल साबता खडो संग सुंदरी॥

परधांने आखीयो राज तोचा पड़ें।
जदप मेलांण घर आव जादव जुड़ें॥
सरग डांडा जही वांट दल सारिखो।
राखीयो आधनें आध रुखमण रुखो॥

भीख भांगा कीया करण कथ भारथी।
सारखा अथरता माहा रथ सारथी॥
अंग सिणगार दह च्यार दो आवरी।
कुंअर इछाहसो कोड आयत करी॥

श्रीकृसन भेटवा देवल दिस संचरी।
पाखती पूजरे साज बहु परवरी॥
मेघमाला जही सोमरथ सारखी।
पीजरे अंबरे गरदरी पालखी॥

दुलहणी पाखती हालियो हेम दळ।
मयंक खडीया मले जांण तारा-मंडळ॥
आव उभा समा काज संकेतरा।
देहली ओलंगी भींतरे देहरा॥

वीट य आव चक्र बेध चहूए वळे।
देहरा सहित सिसपाल वाले दळे॥
गैदलां पैदलां हैदलां गूंथणी।
चालंतो कोट चौफेर लीधो चुणी॥

अंबिका परसती पंथ अवलोकती।
चार वर मालती च्यार दिस चाहती॥
मोह बांण समा ध्रोह मुरछावीया।
गत भागी भड़ां अंत में ग्रबीया॥
स्रोत
  • पोथी : रुकमणी-हरण ,
  • सिरजक : सायांजी झूला ,
  • संपादक : डॉ. पुरषोत्तमलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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