गुर का कह्यो बचन नहिं मानै, फिर फिर कर्म करत है छानै।
छिन एक संत संगत नहिं आवै, अपणै स्वार्थ निस दिन ध्यावै॥
मूर्ख आदमी री विशेषता बतावता थकां संतकवि कैवै है कि मूर्ख आदमी गुरु रै बचना रौ पालण नहीं कर अर छानै -छानै बुरा कर्म कर है। एक पल भी सत - संगत नहीं जावै अर सिर्फ आपणै स्वार्थ खातिर घूमतौ -फिरतौ रैवै है।