गुर का कह्यो बचन नहिं मानै, फिर फिर कर्म करत है छानै।

छिन एक संत संगत नहिं आवै, अपणै स्वार्थ निस दिन ध्यावै॥

मूर्ख आदमी री विशेषता बतावता थकां संतकवि कैवै है कि मूर्ख आदमी गुरु रै बचना रौ पालण नहीं कर अर छानै -छानै बुरा कर्म कर है। एक पल भी सत - संगत नहीं जावै अर सिर्फ आपणै स्वार्थ खातिर घूमतौ -फिरतौ रैवै है।

स्रोत
  • पोथी : जम्भसार ,भाग - 1-2 ,
  • सिरजक : साहबराम राहड़ ,
  • संपादक : स्वामी कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : स्वामी आत्मप्रकाश 'जिज्ञासु', श्री जगद्गुरु जंभेश्वर संस्कृत विद्यालय,मुकाम , तहसील - नोखा ,जिला - बीकानेर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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