राजधानी जयपुर से लगभग 11 कि.मी. उत्तर में अवस्थित आम्बेर दुर्ग पर्वतमालाओं से घिरा एक ऐसा क़िला है जिसे प्रकृति ने जैसे सहज सुरक्षा कवच प्रदान किया हो। शिलालेखों एवं तमाम अन्य प्रचीन ग्रंथों में इसे आम्बेर, अम्बिकापुर, अम्बावती इत्यादि नामों से जाना जाता था। इतिहास अनुसार पहले यहाँ सूसावत मीणों का राज था जिनसे राज-संघर्ष कर 10वीं-11वीं शताब्दी के आसपास कछवाहों ने यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। मुगल साम्राज्य के प्रसार आदि में कछवाहा राजाओं की भूमिका विशिष्ट रही है। राजा भारमल, भगवन्तदास, राजा मानसिंह, मिर्जा राजा जयसिंह, सवाई जयसिंह इत्यादि राजा इसी वंश में हुए। प्रमुख दुर्गों में जहाँ राजप्रासाद प्राचीर के भीतर समतल मैदान होता है, वहीं आम्बेर किले में राजमहल ऊँचाई पर बने।

आम्बेर राजप्रासाद के पर्वतशिखर पर जयगढ़ का भव्य दुर्ग रक्षक के रूप में विद्यमान है। आम्बेर की दिल्ली से समीपता और अन्य कारणों के चलते बहुत सामरिक महत्त्व रहा करता था, लेकिन मुग़ल साम्राज्य से राजनैतिक मित्रता के कारण आम्बेर बाह्य आक्रमणों से लगभग अछूता रहा। किले के नीचे ख्यात मावठा तालाब है। राजमहलों में जाने के लिए मावठा जलाशय के किनारे स्थित ऐतिहासिक दिलाराम के बाग से होकर रास्ता जाता है। किले में शिलामाता का प्रसिद्ध मन्दिर है जिसमें महिषमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है, जिसे राजा मानसिंह बंगाल से विजय कर यहाँ लाये थे। यहाँ मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा निर्मित एक मनभावन बगीचा है।

किले में सिंहपोल से आगे राजप्रासादों का शुरू हो जाते हैं जिनमें—दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास , गणेश पोल, शीश महल, यश मन्दिर, सौभाग्य मंदिर, सुख मन्दिर प्रमुख हैं। दीवान-ए-खास को जय मन्दिर भी कहते हैं। इसमें काँच की कारीगरी का बड़ा सुन्दर काम हुआ है। इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया था। इसी तरह सौभाग्य मंदिर भी एक महल है जो रानियों के मनोरंजन और संवाद के लिए आरक्षित था। इसी किले में निर्मित सुख मन्दिर राजाओं का ग्रीष्मकालीन निवास है। इसकी चौखट में बेलबूटों के सैकड़ों छिद्र बने हैं जिनसे ठंडी हवा भीतर आती है। यहाँ के अन्य राजभवनों में महाराजा मानसिंह के महल, दालान, सुरंग, रनिवास तथा परिचारिकाओं के भवन, बुर्जे इत्यादि हैं जो अद्भुत सौन्दर्य के कारण प्रसिद्ध हैं। यहीं निर्मित जगतशिरोमणि मन्दिर बड़ा भव्य है, उसकी नक्काशी भी बेजोड़। आम्बेर में शिलादेवी, , नृसिंह, अम्बिकेश्वर महादेव इत्यादि के मन्दिर कलात्मक रूप में कला की धरोहर संरक्षित किये हुए है।

कला और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण आम्बेर/आमेर क़िला राजस्थान के प्रसिद्ध किलों में से एक है।

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