यह क़िला आबू से लगभग 13 कि.मी. दूर अरावली पर्वतमाला के एक शिखर पर स्थित है। कर्नट टॉड ने आबू पर्वत को हिन्दू ओलम्पस (देव पर्वत) कहा है। आबू का पुराना किला परमार शासकों द्वारा बनवाया गया था। प्राचीन शिलालेखों में इसको अर्बुद गिरि या अर्बुदाचल कहा गया है। यहाँ स्थित अचलगढ़ एक प्राचीन दुर्ग है। महाराणा कुम्भा ने इसी प्राचीन दुर्ग के अवशेषों पर एक नये दुर्ग का निर्माण करवाया था, जो अचलगढ़ के नाम से प्रख्यात है। पुनर्निर्मित अचलगढ़ हालाँकि जीर्ण अवस्था में है फिर भी अपने इस रूप में भी वह आकर्षक लगता है। यह किसी ज़माने में परमारों का मूल राज्य हुआ करता था। चन्द्रावती उनकी राजधानी थी। इसी चन्द्रावती के खण्डहर आबू पर्वत की तलहटी में आज भी दिखाई पड़ते हैं।
क़िले के इतिहास में सहभागी रहे परमार राजवंश में धरणीवराह नमक एक शासक हुआ। ऐसी मान्यता है कि उसने अपने नौ भाइयों में यह राज्य बाँट दिया था और इन राज्यों की नौ राजधानियाँ ‘नवकोटि मारवाड़’ कहलायीं। दरअसल मध्यकाल में संभावित आक्रमणों से सुरक्षा की दृष्टि से आबू दुर्ग का विशेष महत्व था। सुल्तान महमूद बेगड़ा, कुतुबुद्दीन ऐबक, सुलतान कुतुबशाह आदि का अधिकार बाबत यहाँ राज-संघर्ष रहा। आबू में धारावर्ष नामक शासक हुआ। इतिहास अनुसार धारावर्ष वि.सं. 1220 से वि.सं. 1276 तक आबू का शासक रहा। वह बहुत वीर और पराक्रमी था। उसके पराक्रम का उल्लेख पाटनारायण मन्दिर के एक शिलालेख में मिलता है।
आबू से अचलगढ़ जाते समय मार्ग में सबसे पहले अचलेश्वर महादेव का प्राचीन और सुविख्यात मन्दिर आता है। इस मन्दिर में शिवलिंग न होकर केवल एक गड्ढा है, जिसे ब्रह्मखड्ढ कहा जाता है। मंदिर के पास ही एक विशाल कुण्ड है जो मन्दाकिनी कुण्ड कहलाता है। यह लगभग 900 फीट लम्बा है। यहीं सिरोही के महाराव मानसिंह की स्मारक छतरी है, जिसे कल्ला परमार ने कटार से मारा था। क़िले के पुराने भाग में हनुमानपोल और गणेशपोल दो प्रवेश द्वार हैं। इसके अलावा यहाँ के भव्य निर्माणों में कपूर सागर, चम्पापोल, पार्श्वनाथ का जैन मन्दिर, भैरवपोल, ओखा रानी का महल, पानी के विशाल टांके, कुम्भा के राजप्रासाद आदि देखने योग्य हैं।
कर्नल टॉड ने इस क़िले और आबूविषयक अपनी बात रखते हुए लिखा है- “इन भग्नावशेषों के ढेरों के बीच में खड़े होकर किसका मन भारी (दुःखी) न हो जायेगा? इन गहरे हरे पत्थरों में, जिन पर तुम चल रहे हो, उन टूटी- फूटी चट्टानों के टुकड़ों में, जिन पर घनी जंगली बेलें फैल गयी हैं और जहाँ कभी झण्डा फहराया करता था, कितने गौरवपूर्ण इतिहास छिपे पड़े हैं?”