सांवरिया सेठ का मंदिर राजस्थान के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को वहाँ का लोक-परिसर ‘सांवलिया सेठ का मंदिर’ नाम से भी जानता है। यह मंदिर चितौड़गढ़ की भदेसर तहसील के मंडफिया गाँव में है। यह मंदिर प्राकट्य मंदिर से अलग है। प्राकट्य मंदिर भादसोड़ा में स्थित है। गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित भगवान कृष्ण को समर्पित इस मंदिर का निर्माण-काल सदियों पुराना है। मंदिर के काल और निर्माण को लेकर मतैक्य नहीं है। एक मत यह कहता है कि यह मंदिर 15 वीं शताब्दी का निर्माण है। लेकिन दूसरा मत अलग बात कहता है। यह मत सांवलिया जी की प्रतिमाओं के प्रकटीकरण के संदर्भ में अपनी बात कथा स्वरुप कहता है। मुख्य कथा कुछ इस तरह है कि 1840 में मेवाड़ राज्य के समय एक स्थानीय ग्वाले को एक रात आये स्वप्न में बागुंड नामक गाँव में तीन मूर्तियाँ दिखीं, अगले दिन वहाँ खुदाई हुई और तीन मूर्तियाँ मिलीं। इन तीन मूर्तियों में एक मूर्ति को भादसोड़ा, दूसरी को बागुंड में ही तथा तीसरी को मंडफिया ले जाया गया, जहाँ आज मुख्य मंदिर है। यूँ तीनों जगह मंदिर निर्मित है।

 

मंडफिया स्थित सांवलिया सेठ मंदिर के दोनों ओर बरामदों में दीवारों पर बेहद आकर्षक चित्रकारी की गई है। ऐसा कहा जाता है कि भक्त कवयित्री मीराबाई द्वारका प्रस्थान से पहले इस मंदिर में कीर्तन करती थीं। यह मंदिर राजस्थान की पारंपरिक वास्तुकला का एक अनोखा उदाहरण है, जो अपनी जटिल नक्काशी, गुंबदों और जीवंत रंगों के लिए जाना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। सफेद संगमरमर से निर्मित यह मंदिर सुन्दर गुंबदो और सजावटी तत्वों से सजा है। मंडफिया स्थित कृष्ण धाम के रूप में चर्चित इस मंदिर का दानपात्र महीने में एक बार चतुर्दशी के दिन खोला जाता है। इसके पश्चात अमावस्या का मेला शुरू होता है।

 

होली पर यह डेढ़ माह में और दीपावली पर दो माह में खोला जाता है। इस मंदिर में देश-विदेश से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। मंदिर के दानपात्र खोलने पर पाया जाता है कि उसमें विदेशी मुद्रा बड़ी संख्या में मिलती हैं। जन्माष्टमी के मौके पर यहां भक्तों की भीड़ का तांता लग जाता है। इस भव्य मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ जो जितना देता है, उससे कई गुणा अधिक पाता भी है। इसी कारण से इस मंदिर का चढ़ावा हमेशा चर्चा में रहता है।

 

सांवलिया सेठ मंदिर की आरती का समय त्यौहारों और विशेष दिनों पर बदलता रहता है। यहाँ किसी तरह का शुल्क नहीं है। जलझूलनी एकादशी पर यहाँ तीन दिवसीय मेला भरता है तथा कई धार्मिक आयोजन होते हैं। 3 दिसम्बर 1991 में राजस्थान सरकार द्वारा साँवलियाजी मंदिर का अधिग्रहण कर ‘श्री साँवलियाजी मंदिर मण्डल मण्डफिया’ के नाम से बोर्ड का गठन किया गया। यह मंदिर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के अन्तर्गत आता है।

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