किसी भी व्यक्ति की मौत होने पर विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। मृतक महिला या पुरुष की अर्थी को उसके पुत्र, पौत्र और अन्य परिजन कंधा देकर शमशान तक ले जाते हैं। इससे पहले मृत शरीर को नहलाया जाता है। दाह संस्कार के उपरांत सभी लोग नहाते हैं और भोजन आदि ग्रहण करते हैं। मृतक के दाह संस्कार के एक-दो दिन बाद शमशान जाकर उसकी अस्थियों को इकठ्ठा करते हैं। इनको एक परिजन हरिद्वार ले जाकर गंगा में विसर्जित करता है और गंगाजल लेकर आता है। कुछ क्षेत्रों में मृत्यु के ग्यारहवें दिन परिवार के सभी सदस्य स्नान करने के लिए कुएं या सरोवर पर जाते हैं और स्नान करने के बाद धार्मिक कर्मकांड करते हैं। बारहवें के दिन गंगाजल की पूजा करके सभी को भोजन करवाया जाता है। यदि किसी वृद्ध पुरुष की मृत्यु हुई होती है तो उसके सबसे बड़े पुत्र को पगड़ी बांधने की रस्म अदा की जाती है। इस प्रकार मृत्यु के दिन से लेकर बारहवें के दिन तक अनेक धार्मिक कर्मकांड निभाए जाते हैं। रात्रि के समय गरुड़ पुराण सुनाया जाता है। बैठक करने के लिए घर के चबूतरे पर एक दरी बिछी रहती है जिस पर परिजन बैठे रहते हैं और उन्हें आने-जाने वाले संबंधी एवं परिचित आदि सांत्वना देने के लिए आते रहते हैं।