राजस्थान राज्य के लोग अपने खान-पान के चलते विशिष्ट पहचान रखते हैं। राजस्थानी लोग खानपान के शौकीन और मनुहार के कच्चे माने जाते हैं। प्रदेश की विषम भौगोलिक दसाओं को देखकर बाहर के लोगों को यह भ्रम हो जाता है कि यहां का खानपान बेहद शुष्क होगा पर वास्तविकता इसके उलट है। यह सच्चाई है कि प्रदेश में काम वर्षा के कारण फसलें और सब्जियां अधिक नहीं होती पर शुष्क सब्जियों और आहार के स्वाद की छटा विशिष्ट है। खेती के साथ पशुपालन के कारण यहां दूध उत्पादों की बहुतायत है। हरी सब्जियों के अभाव में सुखी सब्जियों ने मसालों में लिपटकर एक अद्भुत स्वाद उत्पन्न किया है। बाजरा, मक्का और जौ आदि मोटे अनाज का भोजन राजस्थानियों की विशेषता है। खारे पानी जैसी प्रतिकूल चीज ने भी यहां के खाद्य पदार्थों में भुजिया और पापड़ जैसे विशिष्ट उत्पाद जोड़े हैं। खान-पान की इन्हीं विशेषताओं ने राजस्थानी भोजन को खास बनाया है।
सामान्य भोजन
राजस्थानियों का परंपरागत भोजन बाजरा, मक्का, जौ, गेहूं, चावल, दाल, सब्जियां, दूध-दही, छाछ, बेसन की मिठाइयां, खाजा, पापड़, मठरी और आचारों में कैर, सांगरी, हरी मिर्च, नींबू आदि का चलन है। यहां के खाने में लहसुन, प्याज व मिर्च का काफी प्रयोग होता है। मोठ-बाजरे की खिचड़ी भी बड़े चाव के साथ बनाई और खाई जाती है। बेसन के गट्टों, सांगरी, कढ़ी, ग्वार फली की सब्जी सामान्यतया बनाई जाती है। मांगलिक अवसरों पर दलिए की भांति का खास मीठा व्यंजन ‘लापसी’ बनाया जाता रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में बाजरा, जौ या जौ-चना (बेजड़), गेहूं-चना (गोजरा) के आटे की रोटियां तथा दूध-दही के साथ मौसमी और परंपरागत शुष्क सब्जियों के साथ भोजन किया जाता है। प्याज-बाजरा और जौ की रोटी ग्रामीणों का सामान्य भोजन है। छाछ-राबड़ी का सेवन तो सामान्य है। मरु प्रदेश में गर्मियों में राबड़ी का सेवन किया जाता है जो छाछ और बाजरे के मिश्रण से बनती है। हाड़ौती क्षेत्र में सब्जियों की कमी नहीं है पर मरु भाग में फली-काकड़े की सब्जी मौसमी सब्जी के रूप में प्रचलित है। ग्रामीण अंचल में आटे के हलवे का काफी चलन है। मरुस्थलीय फलों में मतीरा, काकड़िया, गूँदिया, बेर का सेवन काफी रहा है। जनजाति क्षेत्र के लोग मक्का, बाजरा, मलीचा के साथ जंगली और पशु-पक्षियों के मांस का सेवन करते हैं। जंगली फल और फूल भी इनके भोजन का भाग रहा है।
मांसाहारी भोजन
राजस्थान सामान्यतया शाकाहारी लोगों का प्रदेश है पर कतिपय वर्गों में मांसाहारी भोजन भी प्रचलित है। पूर्व में यहां जंगली पशु-पक्षियों का शिकार करके मांसाहारी भोजन बनाया जाता था पर आजकल शिकार करना गैरकानूनी है। आजकल बकरे, मुर्गे और भेड़ के मांस का चलन है। नवरात्रि और मंगल आदि विशेष वारों पर मांसाहारी भोजन नहीं किया जाता। शराब का सेवन भी प्रचलन रहा है और राजस्थान की ‘केसर कस्तूरी’, ‘मेहनसर’ और ‘आशा’ जैसे नाम सुरा-प्रेमियों में काफी लोकप्रिय हैं। कुछ क्षेत्रों में अफीम का सेवन भी बड़े पैमाने पर चलन में रहा है।
विशेष राजस्थानी व्यंजन
राजस्थान प्रांत अपने विशेष व्यंजनों के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है। पशुपालन मुख्य व्यवसाय होने के कारण यहां दुग्ध उत्पादों से बने व्यंजन काफी बनाए जाते हैं। राजस्थान की मिठाइयों की विशेष चर्चा रहती है। बीकानेर के रसगुल्ले और भुजिया भारत ही नहीं विदेश में भी लोकप्रिय हैं। रसगुल्ले वस्तुत: बंगाली मिठाई है पर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मारवाड़ी व्यापारियों ने कोलकाता से लौटकर वहां के रसगुल्ले को बीकानेर में बनवाना शुरू करवाया जो बेहद लोकप्रिय होता गया। बीकानेर का ही एक अन्य स्वादिष्ट उत्पाद भुजिया है जिसे क्षेत्र की विशेष भौगोलिक संरचना ने खास स्वादिष्ट बना दिया है। यहां का नमकीन पानी के साथ मोठ का मिश्रण इसे बेहद स्वादिष्ट बना देता है। मोठ और बेसन के पापड़ भी यहां के दैनिक जीवन के खानपान में शामिल है। जोधपुर के मिर्ची बड़े और प्याज कचौरी का स्वाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। जोधपुर की ‘मावा कचोड़ी’ भी बड़ी स्वादिष्ट होती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर के ‘घेवर’ बड़ा चर्चित है। अजमेर की जलेबी, अलवर की मावे की मिठाइयां, कोटा की कचौड़ियां और बागड़ क्षेत्र की मावे से बनी बाटी खाने में बेहद प्रसिद्ध है।
गोठ (पिकनिक) व्यंजन
राजस्थान प्राकृतिक विषमताओं से भरा प्रदेश है। ऐसे में यहां जब भी मौसम में सुहानापन आते ही प्रकृति के खुले वातावरण में घूमने एवं वहां पहुंचकर खाने-पीने का शौक रखते हैं। यहां मित्रों और परिजनों के साथ ऐसे प्राकृतिक वातावरण में जाकर भोजन करने वाला सहभोज ‘गोठ’ कहा जाता है, इसे आज की भाषा में ‘पिकनिक’ की भांति माना जा सकता है। गोठ का एक व्यंजन ‘दाल-बाटी-चूरमा’ बेहद लोकप्रिय है जिसे आज भी लोग चाव के साथ खाने के लिए मांगते हैं।
उत्सव, पर्व और त्योहार का भोजन
राजस्थान प्रदेश लोकोत्सवों और त्योहारों का प्रदेश है। इस सभी अवसरों पर लोग विशिष्ट व्यंजन बनाने की परंपरा है। इन अवसरों पर एक विशेष व्यंजन ‘लापसी’ बनाया जाता है। दिवाली, होली, दशहरा और अन्य मांगलिक अवसरों पर यह व्यंजन लोकजीवन में प्रचलित है। मोठ और बाजरे का खिचड़ा ‘आखातीज’ के अवसर पर बनाया जाता है। शीतला-अष्टमी के पहले दिन भोजन बनाकर छोड़ा जाता है जिसे अगली सुबह ठंडा खाया जाता है। ऋतु परिवर्तन का प्रतीक यह भोजन बास्योड़ा कहलाता है। अजमेर उर्स के दौरान दूध, चावल, चीनी, मक्खन, मेवे एवं मसालों से बड़ी देग में मिठाई बनती है जिसे जायरीनों में बांटा जाता है।
भोजन की मनुहार परंपरा
राजस्थानी खानपान के साथ कुछेक परम्पराएं जुड़ी हुई हैं। राजस्थान में अपने अतिथि को पर्याप्त भोजन करवाने के लिए विशेष आग्रह किया जाता है जिसे ‘मनुहार’ कहा जाता है। भोजन करते समय जब मेहमान भोजन कर लेने का इशारा करता है तभी उसकी थाली में भोजन का कुछ भाग पुन: रख दिया जाता है। इसे खाने के लिए मेहमान से आग्रह किया जाता है। इस रिवाज को मनुहार करना कहा जाता है। राजस्थान में मनुहार को बेहद खास माना जाता है क्योंकि इसके अभाव में आया हुआ मेहमान और बारात आदि प्रसन्न नहीं होते हैं। वस्तुत: मनुहार राजस्थानियों की मेजबानी की खास परंपरा है।