लोकश्रुति के अनुसार कालबेलिया समुदाय जलंधर नाथ के शिष्य कनीपाव जी की संतान हैं। जलंधर नाथ ने गोरख और कनीपाव की परीक्षा लेने के लिए एक-एक पात्र बनाने को कहा। गोरख ने अमृत-पात्र बनाया और कनीपाव ने विविध विषों को मिलाकर विष पात्र बनाया। इस धृष्टता पर क्रुद्ध होकर गुरु जलंधर ने कनीपाव को वही पात्र देकर घर से हमेशा दूर रहने का शाप दिया। तब से इस समुदाय ने ज़हरीले साँपों का साथ पाया। आज भी यह समुदाय घुमक्कड़ों का जीवन जीता आ रहा है।
कालबेलिया नृत्य इस समुदाय की विशिष्ट देन है। यह इनका अपना नृत्य है। इस घुमक्कड़ समुदाय के जीवन में संगीत और नृत्य का विशिष्ट स्थान है। इनका पारंपरिक वाद्य यंत्र बीन है, इसकी संगत में कुछ कालबेलिये भपंग और खंजरी भी बजाते हैं। इधर से उधर दरबदर भटकते इस समुदाय ने इस नृत्य का इजाद अपने मनोरंजन के लिए ही किया था, लेकिन कालांतर में साँप का खेल दिखाने के साथ ही यह नृत्य प्रस्तुत किया जाने लगा। इस नृत्य को विश्वपटल पर ले जाने का श्रेय गुलाबो सपेरा को जाता है। गुलाबो सपेरा इस नृत्य की आरंभिक चर्चित नृत्यांगनाओं में है और आज भी इस नृत्य की प्रस्तुति में शिखर पर विराजमान है।
कालबेलिया नृत्यांगनाएँ अपनी वेश-भूषा में काले रंग के घाघरा-चोली को प्राथमिकता देती हैं। इस परिधान में काँच की कसीदाकारी की जाती है। जो नृत्य के अवसर पर अपनी चकाचौंध से दर्शक को सम्मोहित कर लेती है। बीन की स्वर-लहरियों पर कालबेलिया नृत्यांगनाएँ तेज़ गति के साथ नृत्य करती हैं। इनके शरीर का लोच और हाथों की मुद्राएँ दर्शक को हतप्रभ कर देती है। यह नृत्य तीव्र गति का नृत्य है। इस नृत्य में आँख की पलकों से जमीन पर रखे सुई, नोट और अंगूठी उठाने के हैरतअंगेज कारनामे किए जाते हैं। नृत्यांगना की मादक और कामुक अदाएँ इस नृत्य की प्रमुख विशेषता है। बीन की रसप्लावित धुन पर बलखाती नागिन सा नाच, होठों से फूटता स्वर-लहरियों का झरना, संगीत के सप्तक और वाद्यों की गमक इस नृत्य को और भी रंजक बनाते हैं।
इसे ‘सपेरा नृत्य’ या ‘स्नेक चार्मर डांस’ भी कहा जाता है। इस नृत्य का संगीत पक्ष पुरुष और नृत्य पक्ष स्त्रियाँ संभालती हैं। कालबेलियों का जीवन साँपों पर निर्भर रहता आया है, इसलिए इनके संगीत और नृत्य की लय और तान में भी साँपों का संसार बराबर समाहित रहा है। कालबेलिया नृत्य के अधिकांश स्टेप्स साँपों से प्रेरित हैं। इस नृत्य में साँप की गतिविधियों की नक़ल की जाती है। एक अच्छी और कुशल नृत्यांगना के नृत्य में दर्शक को साँप की भंगिमाएँ स्पष्ट दिखाई पड़ेंगी। नृत्यांगना की चाल, हाथ की मुद्राओं और आँखों की हलचल में दर्शक नागिन का अनुमान करता है। इस नृत्य को साल 2010 में यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया गया है।