देलवाड़ा मंदिर राजस्थान के माउंट आबू स्थित पाँच जैन मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों के निर्माण का समय ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच का माना जाता है। देलवाड़ा का यह मंदिर जैन तीर्थंकरों को समर्पित है। यहाँ जैन तीर्थंकर के साथ-साथ हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित की गई हैं। इस मंदिर-समूह में जो पाँच मंदिर निर्मित है, उसमें विमलशाही मंदिर, श्री महावीर स्वामी मंदिर, लूनावसीह मंदिर, पित्तलहार मंदिर और श्री पार्श्वनाथ मंदिर शामिल है। इन मंदिरों का स्थापत्य वाकई कमाल का है। संगमरमर पत्थरों पर बारीक़ नक्काशी वाले इन मंदिरों की शिल्प-अनुकृति शायद ही कहीं देखने को मिले।

 

सफ़ेद संगमरमर से निर्मित देलवाड़ा जैन मंदिर का प्रमुख विमलशाही मंदिर का निर्माण 1031 ई. में चौलुक्य राज के मंत्री विमलशाह द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। कहते हैं कि इसके निर्माण के समय लगभग 1500 शिल्पियों का कौशल परखा गया। यह मंदिर एक गलियारे के खुले आंगन में स्थित है, जिसमें तीर्थंकरों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ लगी हैं। मज़बूत खंभे, मेहराब, छतों पर कमल, फूलों और जैन पुराणों के दृश्य आदि इस मंदिर की भव्य वास्तुकला के उदाहरण है।

 

यहाँ दूसरा प्रमुख मंदिर लूना वसीह मंदिर से जाना जाता है। कहा जाता है कि विमल शाह के भाई लूना की याद में 1230 ई. में  इस मंदिर का निर्माण किया गया। लूनावसीह मंदिर नेमीनाथ को समर्पित है। वास्तुपाल और  तेजपाल नामक दो भाइयों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के मुख्य भवन को मंडप कहा जाता है। यहीं एक काले रंग का कीर्ति स्तंभ स्थित है, जिसे महाराणा  ने बनवाया था। मंडप में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की काली संगमरमर की मूर्ति है।

 

तीसरा मंदिर पित्तलहार मंदिर नाम से है। इस मंदिर का निर्माण भीम शाह ने बनवाया था। यहाँ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) की विशाल प्रतिमा स्थापित है। मूल धातुओं से निर्मित इस मंदिर का नाम इसी कारण पित्तलहार है। मंदिर में मुख्य गर्भगृह, गुड मंडप और नवचौक है। मंदिर में कुछ प्राचीन शिलालेख भी मौजूद है।

 

चौथा प्रमुख मंदिर श्री पार्श्वनाथ मंदिर नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण मांडलिक तथा उसके परिवार द्वारा 1458-59 में करवाया गया था। यह तीन मंजिला इमारत है। गर्भगृह के चारों तरफ़ चार विशाल मंडप है। मंदिर में दीक्षित, विधादेवियां, यक्ष, आदि सजावटी शिल्पांकन शामिल हैं।

 

पांचवा मंदिर श्री महावीर स्वामी मंदिर नाम से जाना जाता है। महावीर स्वामी जैन धर्म 24वें तीर्थंकर थे। यह प्राचीन मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा कारण है। इस मंदिर का निर्माण 1582 में संभव हुआ था। यह मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है। यहाँ दीवारों पर नक्काशी, ऊपरी दीवारों पर तमाम तरह के चित्र उकेरे गये हैं।

 

इन मंदिरों की असाधारण वास्तुकला की प्रसंशा हर दौर में होती आयी है।

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