जयगढ़ कछवाहा राजवंश की पूर्व राजधानी आम्बेर के दक्षिण पर्वतशिखर पर निर्मित एक विशाल दुर्ग है। जयगढ़ एक उत्कृष्ट गिरि दुर्ग है जो अपने अद्भुत शिल्प और अनूठे स्थापत्य के कारण प्रसिद्ध है। विचित्र रहस्य से भरा यह क़िले में आजादी तक महाराजा और उनके दो किलेदारों ही नियुक्त किये जा सकते थे, बाकी को प्रवेश नहीं था। ये किलेदार कछवाहा राजवंश के निकटतम शाखा के ही सामन्त होते थे; यथा राजावत, खंगारोत, नाथावत इत्यादि। जनश्रुति के अनुसार इस दुर्ग के निर्माता महाराजा मानसिंह-प्रथम हैं, जिन्होंने इसका निर्माण अपनी राजधानी आम्बेर तथा अपने कोष की सुरक्षार्थ करवाया था, जिसे वह काबुल, कंधार और अफगानिस्तान सहित दूरस्थ प्रदेशों में किये गये अपने युद्ध अभियानों में लूट कर लाया था।

जयगढ़ के बारे में ऐसी मान्यता थी कि जो व्यक्ति एक बार जयगढ़ दुर्ग में कैद कर डाल दिया जाता था, वह जीवित नहीं निकलता था। दुर्ग में जनसाधारण का प्रवेश नहीं होने के सम्बन्ध में धारणा यह है कि यहाँ कछवाहा राजाओं का राजकोष रखा हुआ था जिसके सुरक्षा प्रहरी मीणा होते थे। ये मीणा कछवाहों के आगमन से पहले ढूंढाढ़ तथा उसके आसपास के इलाके के अधिपति थे। इसी क़िले में तोप ढालने का संयंत्र लगा हुआ है जो आज भी देखा जा सकता है। ‘जयबाण’ नामक विशाल तोप इसी संयंत्र से संभव हुई है। कहते हैं कि यह तोप केवल एक बार परीक्षण के तौर पर चलायी गयी थी तब इसका गोला चाकसू में जाकर गिरा था। तोप संयंत्र के पास एक छोटा-सा गणेशजी का मन्दिर भी है।

जयपुर के कछवाहा शासक मुगलों के प्रमुख मनसबदार थे। मुगल शासकों की तोपें ढालने की तकनीक मध्यकाल के अंत तक युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाती थीं। शायद यही कारण रहा होगा कि जयगढ़ दुर्ग को इस कार्य के लिए सर्वाधिक उपयुक्त लगा। सिटी पैलेस जयपुर के पोथीखाने और कपड़द्वारे में जयगढ़ का एक नक्शा भी उपलब्ध है जो 18वीं शताब्दी ई. के पूर्वार्द्ध का है। संभवतः इसे महाराजा सवाई जयसिंह ने उक्त दुर्ग की प्राचीर और टांकों के निर्माण के उद्देश्य से बनवाया था। डॉ. गोपीनाथ शर्मा समेत कई इतिहासकारों की यह धारणा है कि जयगढ़ दुर्ग का निर्माण आम्बेर के मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया तथा उन्हीं के नाम पर यह दुर्ग जयगढ़ कहलाया। इसी जयगढ़ के भीतर एक लघु अन्तः दुर्ग भी बना है। किलेबन्दी से युक्त इस गढ़ी में महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजयसिंह को कैद रखा था। विजयसिंह के नाम पर यह लघु गढ़ी विजयगढ़ी कहलाती है।

मुख्यतः इसके तीन प्रवेश द्वार हैं- डूंगर दरवाजा, अवनि दरवाजा और भैंरू दरवाजा, जिसे दुर्ग दरवाजा भी कहा जाता है। यहाँ आपातकाल में दुर्ग से बाहर जाने हेतु गुप्त सुरंगें भी बनी हैं। जयगढ़ दुर्ग में राम हरिहर और काल भैरव के प्राचीन मन्दिर बने हैं जिनमें सजीव और कलात्मक देव प्रतिमायें प्रतिष्ठापित हैं। जयगढ़ के प्रमुख भवनों में जलेब चौक, आराम मन्दिर, राणावतजी, सुभट निवास, विलास मन्दिर, सूर्य मन्दिर (दीवान-ए-आम) खिलबत निवास (दीवान-ए-खास), लक्ष्मी निवास आदि हैं, जो स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। आम्बेर के कछवाहा शासकों के प्रभुत्व का प्रतीक और पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण यह क़िला इतिहास के अनेक प्रसंगों को संजोये खड़ा है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने अपने शासन काल में यहाँ गुप्त खजाने की खोज में इस किले के भीतर हुई व्यापक खुदाई की थी, उस घटना ने जयगढ़ को देश-विदेश में चर्चित कर दिया।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के प्रमुख दुर्ग ,
  • सिरजक : अज्ञात ,
  • प्रकाशक : राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी जयपुर ,
  • संस्करण : 14वाँ संशोधित संस्करण
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