जैसलमेर पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण जगह है। यहाँ स्थापत्य कला का अलग ही महत्व है। यहां के स्थापत्य को राजकीय तथा व्यक्तिगत दोनों का आश्रय लगातार मिलता रहा। यहाँ मुख्य किले के अलावा तमाम हवेलियाँ, जलाशय, महल आदि भव्यता के साथ मौजूद हैं। इन्हीं हवेलियों में एक प्रमुख हवेली है सालिम सिंह की हवेली। इस हवेली का निर्माण तत्कालीन प्रधानमंत्री (दीवान) सालिम सिंह ने 1815 में करवाया था। यह हवेली उनके पुस्तैनी निवास के ऊपर बनाई गयी थी। हवेली की वास्तुकला राजस्थानी और मुगल शैलियों का मिश्रण है। जैसलमेर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित इस हवेली के बारे में ऐसा कहा जाता है कि सालिम सिंह की इच्छा थी कि उनकी हवेली महारावल निवास से ऊँची हो, लेकिन जैसलेमर महारावल को यह कत्तई मंज़ूर नहीं था। बावजूद इसके सालिम सिंह ने ऐसा किया। कहते हैं कि महारावल ने ऊपर की दो मंजिलें तुडवा दी। सालिम सिंह की छवि कुछ-कुछ क्रूर व्यक्ति की थी। उदाहरण के तौर पर ‘पालीवाल-महापलायन’ की घटना का उल्लेख मिलता है।

 

सालिम सिंह की हवेली जैसलमेर के ह्रदय में निर्मित है। हवेली के निर्मित होने में तमाम मोतियों का इस्तेमाल हुआ है। ऐसा उल्लेख है कि इसके निर्माण में एक पुरानी हवेली के भग्न अवशेषों को काम में लिया गया था। इसमें लगभग 38 बालकनियां है। ऊपर की दो मंजिल में कांच और चित्रकला का काम किया गया है। पूरी हवेली का स्थापत्य कमाल का है। वस्तुतः इसकी मयूराकार आकृति, अनूठी पेंटिंग्स, नक्काशी आदि इसकी भव्यता की पुष्टि करते है। झरोखों, जालीदार जालियों आदि पर उत्कीर्ण विविध चित्र और शाही आदमकद चित्र इस 300 साल पुरानी हवेली तक पर्यटकों को खींच लाते हैं।

 

इस हवेली को जहाज महल भी कहा जाता है। यहाँ जैन धर्म से संबंधित कथाएँ आदि उत्कीर्ण है। यहाँ निर्मित एक मंदिर में काम मुद्राओं से युक्त मिथुन प्रतिमाएँ है। सालिम सिंह की हवेली सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के लिए खुली रहती है। भारतीयों के लिए प्रवेश शुल्क 20 रुपये है, और विदेशियों के लिए 100 रुपये है।

जुड़्योड़ा विसै