लोक-वार्ता के माध्यम से सुसभ्य और असभ्य मानव के परंपरा-विधानों की जानकारी प्राप्त होती है। ये लोक-विश्वासों की सुदृढ़ नींव पर बनी होती हैं। जहां लोरी की लय अबोध शिशु को सुला देती हैं, दिनभर श्रम करने के बाद रमणियां अपनी थकान को गीत उगेरकर भुला देती हैं, पहेलियां मन-मस्तिष्क को चेतन कर देती हैं, दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करने के उपरांत जाड़े के समय आग के चहुंओर कथाओं के माध्यम से थकन दूर करता मेहनतकश वर्ग, विविध खेल, नाटक, विवाह आदि के मांगलिक प्रसंग, जीवन के विविध संस्कारों से जुड़े लोकाचार, खेती-किसानी के काम करते समय उगेरे जाने वाले गीत, हंसी मजाक, टोने-टोटके, अंधविश्वास, अनुष्ठान, रीति-रिवाज, स्तुतियां, उत्सव, जातीय श्रेष्ठता के लोक प्रसंग, अलौकिक मान्यताएं आदि विषय शामिल हैं।

 

लोक-वार्ता एक विशद विषय है जिसमें लोकजीवन में धरती-आकाश, जीव जगत के अंगों मनुष्य, पशुओं, मानव द्वारा बनाई वस्तुओं, आत्मा और दूसरे जीवन से, परा मानवी शक्तियों, शकुन-अपशकुनों, भविष्य वाणियों, आकाशवाणियों, जादू टोनों, रोगादि दूर करने की विधियों, रीति रिवाज की पालना के विधान, सत्य कथाएं, कल्पित कथाएं, मनोरंजक कथाएं, कहावतें, गीत आदि समाहित हैं। वस्तुत: लोक-वार्ता लोक साहित्य का अभिन्न अंग है।

 

लोक-वार्ता विशद विवेचन योग्य विषय है पर उसमें से ज्यादातर विषय लोक साहित्य का अंग माने जाने लगे हैं क्योंकि यह मौखिक परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता आया है।

 

वस्तुत: लोक साहित्य लोक-वार्ता विषयक अनेक इतिवृत्तों को आने वाली पीढ़ियों के लिए धरोहर रूप में संरक्षित रखता है।

 

लोक-वार्ता ऐसा अनूठा लोकरचित साहित्य है जो अक्षरों और शब्दों में पन्नों पर नहीं छपा पर वह श्रुति परंपरा से चलता हुआ आज भी लोक से जुड़े रहने वाले साधारण जन को अपनी परंपराओं से जोड़े रखता है।

 

लोक-वार्ता में लोकसाहित्य के समस्त विषय यथा लोकगीत, लोकगाथा, लोककथा, नाट्य, मनोरंजनात्मक गायन, कहावतें-मुहावरे, बच्चों के खेल आदि शामिल होते हैं।

 

वस्तुत: लोक साहित्य लोक-वार्ता का अंग होने के साथ ही लोक वार्ता की सामग्री का रखवाला भी है। लोकसाहित्यिक विधाएं लोक-वार्ता का ही अभिन्न अंग हैं।

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