चूड़ा पहनना
जब गर्भवती स्त्री को आठवां महिना लगता है तब उसके मायके से उसके लिए, दामाद व अन्य परिजनों के लिए वस्त्र, फल और मिठाइयां आदि लेकर आते हैं। संतान जन्म देने वाली माता को लाख का नया चूड़ा पहनाया जाता है और मांगलिक गीत गाए जाते हैं।
साध
कुछ जातियों और क्षेत्र में जब गर्भ का नौवां महिना होता है तो चूड़ा पहनने की रस्म के समान ही विधि-विधान से पूजा की जाती है जिसे ‘साध’ कहा जाता है।
जातकर्म
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद गांवों में अजवाइन और गुड़ को हल्का गरम करके नवजात शिशु के मुंह में एक-दो बूंद डाली जाती है। इसे ‘घूंटी पिलाना’ कहा जाता है। इसका उद्देश्य शिशु को अमंगलकारी ताकतों से बचाना और दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिलवाना होता है। इसके बाद शिशु की नाभि से गर्भनाल काटकर उसे स्नान करवाया जाता है। उस नाल को दो दीयों के बीच रखकर रात्रि में तारों का उदय होने के बाद मुख्य दरवाजे के बांयी तरफ गाड़ दिया जाता है। इसे ‘ओल गाड़ने’ की रस्म कहा जाता है। लड़की के जन्म पर यह रस्म नहीं होती है।
नामकरण
नवजात शिशु का नामकरण संस्कार लग्न और नक्षत्र के आधार पर पंडित द्वारा नाम का पहला अक्षर बताने के बाद किया जाता है। इस संदर्भ में अनेक टोटके राजस्थानी लोकजीवन में प्रचलित हैं। किसी परिवार में अगर बच्चों की असमय मृत्यु होती रही हो तो बच्चे के जन्म के कुछ दिनों बाद उसका नाक बिंधवाकर लड़का होने की दशा में उसका नाम नाथुला और लड़की होने पर उसका नाम नाथीबाई रखने का रिवाज है। इसके अलावा कुछेक बार बच्चे को जन्म के तुरंत बाद उसे कपड़े में लपेटकर कूड़े के ढेर पर थोड़ी देर के लिए लिटा दिया जाता है। लड़के का नाम कुरड़ाराम और लड़की का नाम रूड़ी देवी रखा जाता है। कई बार नवजात शिशु को पड़ोसी के घर यह कहकर दे दिया जाता है कि बच्चा आपका है, थोड़ी देर बाद उसे पुन: घर पर लाया जाता है। उसके बाद बच्चे का नाम मांगीलाल और लड़की का नाम मांगीबाई रखा जाता है।
सूर्य पूजा (न्हावण)
बच्चे के जन्म के पांच से दस दिनों तक एक मुहूर्त देखकर सूर्य पूजा की जाती है। इस अवसर पर बच्चे के ननिहाल से उसके लिए तथा उसकी माता के लिए वस्त्र आदि लाए जाते हैं।
जलवा पूजन
बच्चे के जन्म के पंद्रह से बीस दिनों बाद बच्चे की माता कुएं पर जाकर उसकी पूजा करती है। उसके साथ महिलायें गीत गाते हुए चलती हैं। इस अवसर पर परंपरागत मिठाइयों का वितरण किया जाता है।
मुंडन संस्कार (झड़ूला उतारना)
यह संस्कार बच्चे का परिवार अपने कुलदेवता, कुलदेवी, भेरुँजी आदि के स्थान पर बच्चे को साथ ले जाकर करता है। इसका यह नियम भी है कि मुंडन बच्चे की आयु के विषम संख्या के वर्षों में किया जाता है, जैसे जन्म के प्रथम वर्ष में होगा, दूसरे में नहीं, तीसरे वर्ष में हो सकता है।
ढूंढ
बच्चे के जन्म के बाद की पहली होली पर उसके ननिहाल से उसके लिए, उसकी माता एवं दादी के लिए वस्त्र और पुरुषों के लिए रुपयों की भेंट आती है। इसके साथ मिठाइयां और फल आदि भी भेजे जाते हैं।
चतड़ा चौथ (गणेश चतुर्थी)
इस त्यौहार के अवसर पर बच्चे और उसकी माता व दादी के लिए वस्त्र और पिता व दादा के लिए नकद राशि एवं बच्चे के लिए चांदी के गहनों के साथ लकड़ी के दो छोटे-छोटे डंडे आते हैं। रीति-रिवाज के अनुसार इस त्यौहार पर गेहूं और गुड़ मिलाकर लापसी पकवान बनाया जाता है जिसे सभी लोगों में बांटा जाता है।