आदिवासी समुदाय की विशिष्ट भाषा, संस्कृति, आर्थिक व्यवस्था और पुराकथा होती है। आदिवासी समुदाय की सामाजिक सरंचना भी खास होती है। इनके रीति-रिवाज आदि भी सामान्य समाज से कतिपय भिन्न होते हैं। आदिवासी जातियों में जन्म से मृत्यु तक के विशेष रिवाज उन्हें हिन्दू समाज से अलग पहचान दिलाते हैं। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसकी नाल गाय-भैंस बांधने के स्थान पर जमीन को खोदकर गाड़ दिया जाता है। इससे पशुधन की वृद्धि होने की धारणा है। लड़का या लड़की पैदा होने पर समान रूप से खुशियां मनाने का रिवाज आदिवासियों में है। ये अपने जातीय लोगों को मदद करने की परंपरा है।
आदिवासियों में विवाह से संबंधित रीति-रिवाज
आदिवासी अपनी गौत्र में विवाह नहीं करते हैं। इनमें विवाह के लिए वर द्वारा वधू का मूल्य चुकाना पड़ता है। यदि विवाह का विच्छेद हो जाता है तो यह वधू मूल्य वापिस देना पड़ता है। आदिवासियों में बहुविवाह का रिवाज भी है। कई बार ‘विनिमय विवाह’ भी किया जाता है जिसमें दोनों परिवार अपनी लड़की के बदले में लड़की को ब्याहकर लाते हैं। इस विवाह में वधूमूल्य नहीं चुकाया जाता।
आदिवासियों में मरणोपरांत रीति-रिवाज
आदिवासी समाज में मृत्यु के बाद पंडित आदि के माध्यम से कोई कर्मकांड नहीं करवाया जाता है। मृतक की देह को जलाया जाता है। मृतक की अस्थियों को वर्ष में एक बार भरने वाले बेणेश्वर मेले के दौरान सोम और माही नदी के संगम में प्रवाहित कर दिया जाता है।