नागौर जिले का कुचामन कस्बा इन ख्यालों का केंद्र रहा है। इसी के आधार पर इन्हें कुचामणी ख्याल कहा जाता है। इस ख्याल की परंपरा लगभग सवा सौ वर्ष पुरानी है। कुचामणी ख्याल के प्रवर्तक पंडित लच्छीराम थे। उन्होंने लगभग तीस ख्यालों की रचना की थी। इनमें गोगा चौहान, नौटंकी शहजादा, चंदमलियगिर, मीरमंगल, विक्रमादित्य, बुलिया भटियारिन, राजा चंदरसेन, जगदेव-कंकाली, भक्त प्रहलाद, सेठ-सेठाणी, निहालदे सुलतान, भगत पूर्णमल, खेमजी आभलदे आदि उल्लेखनीय हैं। कहा जाता है कि लच्छीराम दोनों हाथों से लिखने की कला जानते थे। उनके लिखे कुछेक ख्याल अब भी अप्रकाशित हैं।
मीठड़ी निवासी लच्छीराम खोजी ने भी कई ख्याल इसी शैली में लिखे। ये पंडित लच्छीराम के शिष्य थे। खोजी के लिखे ख्यालों में रुक्मणी मंगल, सत्यनारायण, पन्नावीरमदे, मोरध्वज, पाबूसिंह राठौड़, हरीशचंद्र आदि मुख्य हैं। कुचामणी ख्यालों के अन्य लेखकों में नत्थू दर्जी, गणपत ब्राह्मण, विप्र झाल, गोविंद राम गौड़, धन्नालाल, भैंरू बगस, अंबालाल, झूंथा जोशी, नंदलाल गोपाल, बलदेव, छाजूलाल, सुखलाल, नानूलाल, लछिमन, न्यादरसिंह, रतना खाती आदि प्रमुख हैं। इन ख्यालों के प्रमुख कलाकारों में कासम, मगराज, फकीर दौलतराम, रमजान, पूनमचंद, शिवदयाल लखारा, घासीराम, भंवरलाल, उगमराज आदि प्रसिद्ध हैं। कुचामणी ख्यालों के शौकिया और व्यवसायिक दोनों प्रकार के मंचन दल बने हुए हैं। इनमें मेड़ता, करजालिया, डाबला, रूपनगढ़ लोखाड़ा, बादरपुरा, रायपुर पाटुंदा, बोराणा, खराडीखेड़ा, ढींकोला, दांतल, हेमरगढ़, बाली, मूंडारा, सेवाड़ा, सादड़ी, देसूरी, लाडपुरा, मांडल, लूणेरा, कुंभलगढ़, नंदवाई, खानपुर, सागवाड़ा आदि स्थानों पर अच्छे ख्याल दल हैं।
कुचामणी ख्यालों का मंच त्रिदिशीय व साधारण सजावट वाला होता है। ये ख्याल ज्यादातर जमीन पर ही खेले जाते हैं। ख्याल शुरू होने से पहले एक व्यक्ति मंच की सफाई करता है और फिर भिश्ती आकर पानी छिड़कता है। इसके बाद विदूषक के रूप में आनंदी प्रवेश करता है जो कमर के नीचे जनाना और कमर से ऊपर पुरुष वेश पहने होता है। स्त्री पात्र कलीदार घाघरा और पुरुष पात्र अंगरखी व कलंगी वाली पगड़ी पहनते हैं। संदेश पहुंचाने के लिया एक हलकारा पात्र होता है। इन ख्यालों में मंच पर आते ही हरेक पात्र अपना परिचय देकर नृत्यमयी भूमिका प्रस्तुत करता है। वाद्य के रूप में नगारा-नगारी, हारमोनियम, ढोलक, मंजीरे आदि का प्रयोग किया जाता है। पात्र के संवाद बोलते समय साज नहीं बजाये जाते। एक संवाद पूरा होने के बाद वाद्य बजाए जाते हैं। इनमें स्त्री पात्रों की भूमिका भी पुरुष ही निभाते हैं। इन ख्यालों में कथावस्तु दोहा, कवित्त, शेर, सोरठा और छप्पय आदि छंदों में आबद्ध होती है। कुचामणी ख्यालों का राग-विधान शास्त्रीय होने के साथ-साथ लोकगीतों पर आधारित होता है।