हाड़ी रानी की बावड़ी टोंक ज़िले के टोडारायसिंह कस्बे में स्थित है। यह इतिहास प्रसिद्ध हाड़ी रानी के नाम से निर्मित है। हाड़ी रानी सलूंबर शासक राव रतनसिंह की पत्नी थी, कहते हैं कि उन्होंने अपनी शादी की पहली वर्षगाँठ के समय इस बावड़ी का निर्माण करवाया। यह राजस्थान की प्रमुख बावड़ियों में से एक है। बावड़ी की सीढ़ियाँ बड़े जटिल स्थापत्य में निर्मित हैं। यहाँ टोडारायसिंह के प्रसिद्ध शीलाखंड उपयोग में लिए गए हैं, जिन्हें देसभाषा में ‘लांगड़िया’ कहते हैं।

 

यह बावड़ी तीन मंजिला है और उनमें से दो अब पानी के नीचे हैं। बावड़ी के उत्तर की ओर पर कमरे, मेहराब, गलियारे आदि निर्मित हैं। यहाँ पहले पानी सिर्फ़ आखिरी मंजिल तक ही था। अद्भुत शैली में निर्मित ये बावड़ी अपनी शानदार डिजाइन के लिए जानी जाती है। बावड़ी को आम तौर पर दो भागों में बाँटा गया है;एक ऊर्ध्वाधर तो दूसरा झुकी हुई सीढ़ियाँ का भाग जो कुएँ से जुड़ता है। यहाँ आस-पास की दीवारें इस तरह से बनाई गई हैं कि गर्मियों में पानी ठंडा रहे।

 

यह बावड़ी लगभग आयताकार है। ऐसा कहा जाता है कि इसमें एकबार प्रवेश के बाद पुनः उसी रास्ते से बाहर आना बड़ा कठिन काम है। लगभग भूलभुलैया की मानिंद इस बावड़ी को हाड़ी रानी का कुंड भी कहते हैं। इस बावड़ी के बारे में तमाम कथाएँ प्रचलित हैं। कोई कहता है यहाँ आत्माएँ भटकती हैं, कोई इसे भुतहा बावड़ी कहते हैं। यहाँ सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचा जा सकता है। सीढ़ियाँ जैसे पहाड़ की सतत ढलान। बावड़ी की गहराइयाँ बिना गारे के पत्थर के ब्लॉक से बनी हैं। बावड़ी की पारंपरिक वास्तुकला में कोई समरूपता नहीं है। इसी बावड़ी में अमोल पालेकर निर्देशित प्रसिद्ध फ़िल्म पहेली के कुछ दृश्य फिल्माए गए थे। तब से इसका एक पर्यटक स्थल के रूप में और अधिक विकास हुआ।

जुड़्योड़ा विसै