तौ उभै रीतं पाई थीतं कारिज कीतं जगि जीतं।

सो अगम अजीतं निरमल चीतं इहि मत मीतं निज नीतं।

भरम सुभीतं इहि बिधि बीतं लाहा लीतं धनि धीतं।

करि हरि हीतं दान सु दीतं नाहीं ईतं कहा होइ वाहू झक्खं॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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