तौ उभै न रीतं पाई थीतं कारिज कीतं जगि जीतं।
सो अगम अजीतं निरमल चीतं इहि मत मीतं निज नीतं।
भरम सुभीतं इहि बिधि बीतं लाहा लीतं धनि धीतं।
करि हरि हीतं दान सु दीतं नाहीं ईतं कहा होइ वाहू झक्खं॥