अज्ञानी कसि देह मन कूं मारि है।

ज्यूं संकट मधि सर्प विषहु अधिकार है॥

तैसे सठ हठ देखि कबहुं लीजिये।

रज्जब परखौ प्राण प्रपंच धीजिये॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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