अज्ञानी कसि देह न मन कूं मारि है।
ज्यूं संकट मधि सर्प विषहु अधिकार है॥
तैसे सठ हठ देखि न कबहुं लीजिये।
रज्जब परखौ प्राण प्रपंच न धीजिये॥