धूप पर ग़ज़ल

धूप अपनी उज्ज्वलता और

पीलेपन में कल्पनाओं को दृश्य सौंपती है। इतना भर ही नहीं, धूप-छाँव को कवि-लेखक-मनुष्य जीवन-प्रसंगों का रूपक मानते हैं और इसलिए क़तई आश्चर्यजनक नहीं कि भाषा विभिन्न प्रयोजनों से इनका उपयोग करना जानती रही है।

ग़ज़ल2

थां सूं म्हारो नांव पिताजी

राजूराम बिजारणियां

ऊगतो सूरज

पवन शर्मा