सिंझ्या पर ग़ज़ल

दिन और रात के बीच के

समय के रूप में शाम मानवीय गतिविधियों का एक विशिष्ट वितान है और इस रूप में शाम मन पर विशेष असर भी रखती है। शाम की अभिव्यक्ति कविताओं में होती रही है। यहाँ प्रस्तुत चयन में शाम, साँझ या संध्या को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

ग़ज़ल1

हांझ पड़्यां ई हलग्या दीवा

पुष्कर 'गुप्तेश्वर'