हो ब्रह्मा बियोग ब्रह्मांड मैं सोग, लयो जिय जोग सबै दिसि रोवै।

नहीं नमि धीर परै बहु नीर, सही उर पीर घटा तन खोवै॥

फिरै ससि भान समीर समान, रहै नहिं ठान दसौ दिस जोवै।

गिरै गिरधार कहै पतझार, सु पोसहिं बार क्यों रज्जब गोवै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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