आजु कहौं फिरि काल्हि कहौं, परसौंकौं, कहौं बिन बातन जीहैं।

केते खिजैं बरजैं लरजैं, तरजैं तऊ अरजैं समही हैं।

लाज लेस कुलाज कलेस न, अैसी हमेस रीति नई हैं।

प्रीति सरीति कितेकनसौं, पे लियें फिरैं चाहि चकोरनकी हैं॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुधसिंह हाङा ,
  • संपादक : श्री रामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राजस्थान )
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