आज लसैं ब्रजनारी सबै, जमना तटपैं जुरि आई अलेखैं।

ता समैं आप कढे नंदनंदन, सोहैं चढे उपमांन बिसेखैं॥

रीझि रही अपनैं अपनैं मन, देखि सबै प्रगटें य्यों असेखैं।

कोरि चकोरनकी चित चाह, रही जैसे चौदहैं चंदके देखैं॥

स्रोत
  • पोथी : नेहतरंग ,
  • सिरजक : बुधसिंह हाङा ,
  • संपादक : श्री रामप्रसाद दाधीच ,
  • प्रकाशक : संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राजस्थान )
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