हो पीय बियोग तजे सब लोग, न भावहिं भोग भई बनवासी।
जु भूषन भंग दिगंबर अंग, रंगी इहि रंग अनाथ उदासी॥
बैराग की रीति गई तन जीति, भई बिपरीति दुखी दुख त्रासी।
हो रज्जब राम मिले नहिं बाम, गये सब जाम कहो कब आसी॥