गंभीर धीर बिरचि बीर, खेत मैं गलारई।
रोपि पांव जुद्ध चाव सूर बीर आये दांव आप मरै मारई॥
सरीर की सुरति छांड़ि मित मैं अमल चाढ़ि, पिसण जाण तेग काढ़ि फेरिहूं न बारई।
जु त्याग दे सरीर धाम रज्जबा सु राम काम, राखई जु एक नाम सो कदे न हारई॥