पूत कुंवेर कीदो जळ क्रीड़त, मंद चकै रिख कांण मिटायौ।

कोप दियौ रिख श्राप तबै तन, छोड़ दोहूं जढ़ जोन पायौ।

आप बंधे तब ऊखल के व्रिछ, ढाह के ताह को दोख मिटायौ।

ईसरदास की वेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : भक्तकवि ईसरदास बोगसा कृत सवैया ,
  • सिरजक : डॉ.शक्तिदान कविया ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : विश्वम्भरा पत्रिका, प्रकाशन स्थल-बीकानेर
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